फर खिल खिला उठा किसी नादान की तरह
हँसने लगा है चाँद भी इंसान की तरह
इक इक अदा में बो ही बहर वो ही बाकपन
पढ़ता हँू उसको मीर के दीवान की तरह
बातें हैं सर्दियों में उतरती है जैसे धूप
संासें हैं गर्म रात के तूफान की तरह
कह दे कोई तो चौन से इक रात सो रहा हूँ
बैठा हूँ अपने घर में ीह मेहमान की तरह
है कितना होशियार समझ कर हरेक बात
रहता है हर मकाम पे नादान की तरह
मैं अपनेरब से माँग रहा था किसी को और
क्यों आ गये हो बीच में शैतान की तरह
4 comments:
बहुत बढिया लिखते रहे |
اک اک ادا میں وہ ہی بہر وہ ہی بانکپن
پڑھتا ہوں اسکو میر کے دیوان کی طرح
کون باتوں میں آتا ہے پگلے
کسکو دکھڑا سناتا ہے پگلے
کیا بچایا ہے میں نے تیرے سوا
تو مجھے آزمزتا ہے پگلے
bhut badhya
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