Monday, January 31, 2011 मोलाना हारुन आना कासमी की ग़ज़्लें १

फर खिल खिला उठा किसी नादान की तरह

हँसने लगा है चाँद भी इंसान की तरह

इक इक अदा में बो ही बहर वो ही बाकपन

पढ़ता हँू उसको मीर के दीवान की तरह

बातें हैं सर्दियों में उतरती है जैसे धूप

संासें हैं गर्म रात के तूफान की तरह

कह दे कोई तो चौन से इक रात सो रहा हूँ

बैठा हूँ अपने घर में ीह  मेहमान की तरह

है कितना होशियार समझ कर हरेक बात

रहता है हर मकाम पे नादान की तरह

मैं अपनेरब से माँग रहा था किसी को और

क्यों आ गये हो बीच में शैतान की तरह
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4 comments:

Unknown said...

बहुत बढिया लिखते रहे |

molana haroon ana qasmi said...

اک اک ادا میں وہ ہی بہر وہ ہی بانکپن
پڑھتا ہوں اسکو میر کے دیوان کی طرح

Unknown said...

کون باتوں میں آتا ہے پگلے
کسکو دکھڑا سناتا ہے پگلے

کیا بچایا ہے میں نے تیرے سوا
تو مجھے آزمزتا ہے پگلے

ana qasmi said...

bhut badhya

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